Richa Kar इस महिला ने बना दी 1600 करोड़ की कंपनी; आप भी ले सकते हैं सीख
Zivame की कहानी — एक प्रेरणादायक सफर
1. शुरुआत
ज़िवेम की स्थापना 2011 में हुई थी। इसकी संस्थापक ऋचा कर (Richa Kar) थीं, जिन्होंने महसूस किया कि भारत में बहुत सी महिलाओं को अंडरवियर खासकर ब्रा और लिंजररी खरीदने में असहजता होती है।
उन्होंने यह देखा कि शॉपिंग स्टोर में महिलाओं को “फिट” समझाने वाला कोई भरोसेमंद माहिर हो, साइज विकल्प बहुत सीमित हों, और अक्सर शर्मिंदगी महसूस करनी पड़ती है।
2. शिक्षा और प्रेरणा
ऋचा कर ने BITS पिलानी में इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और बाद में NMIMS से MBA किया।
उनका पहले का काम SAP Retail Consultancy में था, जहां उन्होंने विक्टोरिया सीक्रेट जैसी ब्रांड्स का काम देखा और यह महसूस किया कि भारत में महिलाओं के लिए एक खास प्लेटफॉर्म की कमी है जहाँ वे सहज होकर intimate wear खरीद सकें।
3. शुरुआती चुनौतियाँ
पैत्रिक विरोध: जब ऋचा ने अपने परिवार को यह आइडिया बताया, तो शुरुआत में खासकर उनकी माँ ने इसकी आलोचना की।
फंडिंग: उन्होंने शुरुआती पूंजी के लिए घर वालों और दोस्तों से ₹ 35 लाख जुटाए।
ऑफिस लेना मुश्किल था: क्योंकि लोग lingerie-बिजनेस को “संकोचजनक” समझते थे, कई मकान मालिक ऑफिस स्पेस देने में हिचक रहे थे।
4. व्यापार मॉडल और इनोवेशन
ज़िवेम ने एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म बनाया, जो महिलाओं को निजी तौर पर, बिना शर्मिंदगी के खरीदारी का अनुभव दे सके।
उन्होंने डिस्क्रीट पैकेजिंग, कैश-ऑन-डिलीवरी (COD), रिटर्न की व्यवस्था और ऑनलाइन ब्रा साइज कैलकुलेटर जैसी सुविधाएं दीं, जिससे ग्राहक सही साइज चुन सकें।
उत्पाद रेंज बहुत चौड़ी थी — लगभग 5,000 डिज़ाइन्स, 50 ब्रांड्स, और 100 साइज तक।
बाद में उन्होंने प्राइवेट लेबल (स्व-निर्मित ब्रांड) लॉन्च करना शुरू किया, जिससे मार्जिन बेहतर हुआ।
ऑनलाइन ही नहीं, ज़िवेम ने 2016 के आसपास ऑफलाइन स्टोर्स (“Zivame Studios” / फिट लाउंज) खोले, जहां प्रशिक्षित फिट एडवाइज़र्स होती हैं।
5. ब्रांडिंग और मार्केटिंग
समाज में lingerie खरीदने के टैबू (stigma) को तोड़ने के लिए ज़िवेम ने शिक्षात्मक और संवेदनशील मार्केटिंग की।
उन्होंने Real मॉडलों” (real women) का उपयोग किया, ग्लैमरस मॉडल्स की बजाय — जिससे अधिक महिलाओं को आत्म-विश्वास मिलता था।
2014 में ज़िवेम ने टीवी विज्ञापन जारी किया जिसमें “ब्र” (bra) शब्द का खुलकर इस्तेमाल किया गया — यह उस समय के लिए क्रांतिकारी था।
6. फंडिंग और स्केलिंग
मई 2012 में, ज़िवेम को पहला बड़ा फंड मिला (लगभग US$ 3 मिलियन)।
बाद में 2015 में और भी बड़ी फंडिंग राउंड हुई (लगभग US$ 40 मिलियन)।
ज़िवेम में निवेशकों में IDG वेंचर्स इंडिया, Kalaari Capital, ज़ोडियस, इत्यादि शामिल थे।
7. मूल्यांकन और अधिग्रहण
समय के साथ, ज़िवेम का वेल्यू बहुत बढ़ गया। कुछ रिपोर्टों में यह कहा गया है कि यह एक ₹ 1,000 करोड़ तक की कंपनी बन गई।
2020 में, रिलायंस रिटेल ने ज़िवेम में हिस्सेदारी खरीदी, जिससे ज़िवेम का एक्सपेंशन और लोजिस्टिक पावर मजबूत हुई।
8. ऋचा कर की भूमिका और उपलब्धियाँ
हालांकि ऋचा कर ने 2017 में CEO पद से हट गईं, लेकिन वह बोर्ड में शामिल रहीं और ब्रांड के विज़न को आगे ले जाती रहीं।
उनकी दृढ़ता, साहस और सामाजिक दृष्टिकोण ने महिलाओं के लिए लिंजररी खरीदना आसान, सुरक्षित और सम्मानजनक बना दिया।
उनकी मेहनत का पुरुस्कार यह है कि ज़िवेम न सिर्फ एक व्यवसाय बन गया, बल्कि एक समाज-परिवर्तनकारी ब्रांड भी बन गया है, जिसने महिलाओं की आत्म-स्वीकृति और आत्मविश्वास में मदद
सीख और प्रेरणा
किसी भी “संकोचजनक” (taboo) या समाज में बंद विषय पर काम करना मुश्किल हो सकता है, लेकिन अगर アイडिया सही हो और लक्ष्य साफ हो, तो बड़ी सफलता मिल सकती है।
शुरुआती फंडिंग के लिए परिवार और दोस्तों का सहयोग बहुत काम आ सकता है।
डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म + डेटा एनालिसिस (जैसे साइज कैलकुलेटर) एक बड़ा फायदा दे सकते हैं।
ब्रांड बनाते समय सामाजिक जागरूकता (awareness) और इम्पैक्ट देना भी महत्वपूर्ण है — सिर्फ मुनाफा के लिए नहीं।
ऑफ़लाइन और ऑनलाइन दोनों चैनल मिलाकर (omni-channel) विस्तार करना व्यापार की स्थिरता बढ़ा सकता ह

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